दशा माता की पहली कहानी में राजा नल और दमयंती की कहानी है प्राचीन समय में राजा नल और दमयंती रानी सुख पूर्वक राज करते थे उनके दो पुत्र थे उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी एक दिन की बात है कि जिन होली 10 से का व्रत था एक ब्राह्मण राजमहल में आई और उसे रानी से कहा कि दशामाता का डोरा ले लो बीच में दासी बोली हां रानी साहिबा आज के दिन सभी सुहागन महिलाएं दशा माता की पूजन और व्रत करते हैं और इस दौरे की पूजा करके गले में बांधती है इससे घर में सुख-समृद्धि आती है रानी ने ब्राह्मण उसे दौड़ा लिया और विधि के अनुसार पूजन करके अपने गले में बांध
लिया कुछ देर के बाद राजा नल वहां आया और उसने दमयंती के गले में दोहरा बंधा हुआ देखा राजा ने पूछा इतने सोने के गहने पहनने के बाद भी तुमने तो डरा क्यों बांधा है रानी कुछ कहती इससे पहले ही राजा ने उसके घेरे को तोड़कर आदमी फेंक दिया रानी ने जल्दी से डोरे को उठाया और उसे पानी में घोल कर पी गई और ऐसे बुली यह तो दशा माता का डोरा था आपने उनका अपमान करके अच्छा नहीं किया उसी रात को जब राजा सो रहा था तब दशामाता स्वप्न में बुढ़िया के रूप में आई और राजा से बोली राजा तेरी अच्छी दशा जा रही है और बुरी दशा आ रही है तूने मेरा अपमान करके अच्छा नहीं किया ऐसा कहकर बुढ़िया रूपी दशामाता अंतर्ध्यान हो गयी।
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दशा माता की पहली कहानी me राजा नल की गरीबी
अब जैसे-जैसे दिन बीतते गए वैसे-वैसे कुछ ही दिनों में राजा की सारी थॉट बाद हाथी घोड़े लाव-लश्कर धन-धान्य सुख शांति सब कुछ नष्ट होने लगा यहां तक कि भूखे मरने का समय आ गया एक दिन राजा ने दमयंती से कहा तुम अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाओ रानी ने कहा मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी जिस प्रकार आप रहेंगे उसी प्रकार मैं भी आपके साथ रहूंगी तब राजा ने कहा ठीक है हम अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में चलते हैं वहां जो भी काम मिल जाएगा वह कर लेंगे
इस प्रकार नल-दमयंती अपने देश को छोड़कर चल दिए चलते चलते रास्ते में भी राजा का महल दिखाई दिया वहां पर राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ दिया आगे चले तो रास्ते में राजा के मित्र का गांव आया राजा ने रानी से कहा चलो हमारे मित्र के घर चलते हैं मित्र के घर पहुंचने पर उनका खूब आदर-सत्कार हुआ मित्र ने कई पकवान बनाकर उन्हें भोजन कराया और अपने शयनकक्ष में सुला दिया उस कमरे में मूंग की आकृति की खोटी पर मित्र की पत्नी का हीरों जड़ा कीमती हार टंगा हुआ था आधी रात में महारानी की नींद खुली तो उसने क्या देखा कि वह बेजान खुटी उस हार को निगल रही है।
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राजा नल और दमयंती की कथा
यह देखकर रानी ने तुरंत राजा को जगा कर उसे भी यह दिखाया तब दोनों ने विचार किया कि सुबह होगी तो मित्र के पूछने पर क्या जवाब देंगे इसलिए इसी समय हमें यहां से चले जाना चाहिए राजा रानी दोनों रात्रि को ही वहां से चल दिए सुबह होने पर मित्र की पत्नी ने होती पर अपना हाथ दे कि हर वहां नहीं था उसने अपने पति से कहा तुम्हारा मित्र कैसा है जो मेरा हर चुराकर रात्रि में ही भाग गया मित्र ने अपनी पत्नी को समझाया कि मेरा मित्र कभी ऐसा नहीं कर सकता तुम धीरज रखो और कृपया उसे चोर मत कहो कुछ और आगे चलने पर राजा नल की बहन का गांव आया
राजा ने बहन के घर खबर पहुंचाई कि तुम्हारे भाई-भौजाई आए हैं खबर देने वाले से बहन ने पूछा कि वह कैसे हार से आए हैं वह बोला दोनों अकेले हैं पैदल आए हैं और दुखी हाल में है इतनी बात सुनकर बहन एक थाली में खाना रोटी रखकर भैया भाभी से मिलने आई राजा ने अपने हिस्से का खा लिया लेकिन रानी ने जमीन में गाड़ दिया अब वहां से आगे चले रास्ते में एक नदी मिली राजा ने नदी में से मछलियां निकालकर रानी को दे दिया और बोला तुम इन मछलियों को भूमिका रखो मैं गांव में से परोसा लेकर आता हूं गांव का नगर सेठ सभी लोगों को भोजन करा रहा था राजा गांव में गया और
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परोसा लेकर वहां से चला दो चीनी झपट्टा मारा और सारा भोजन नीचे गिर गया राजा ने सोचा कि रानी सोचेगी कि राजा खुद तो भोजन करके आ गया और मेरे लिए कुछ भी नहीं लाया उधर रानी जब मछलियां भूनने लगी तो दुर्भाग्य से सभी मछलियां भी धोकर नदी में वापस चली गई अब रानी ने उदास होकर सोचा कि राजा पूछेंगे और सोचेंगे कि रानी सारी मछलियां खुद आ गई और मुझसे झूठ बोल रही है जब राजा वहां आए तो मन ही मन सारी बात समझ गए और वहां से आगे चल दिए चलते-चलते रानी के मायके का गांव आया राजा ने कहा तुम अपने मायके चली जाओ वहां दासी का कोई भी काम कर लेना मैं इसी गांव में
कहीं पर नौकर हो जाऊंगा इस प्रकार रानी महल में राशि का काम करने लगी और राजा तेली के गाने पर काम करने लगा दोनों को काम करते बहुत दिन बीत गए जब होली 10 से का दिन आया तब सभी रानियों ने सिर धो कर स्नान किया दासी ने भी स्नान किया दासी ने रानियों का सिर उठा तो राजमाता ने कहा जो अलार्म मैं तेरा सिर भी ग्रोथ दो ऐसा कहकर राजमाता जब दासी का सिर गोद ही रही थी तो उन्होंने राशि के सिर में पद्म देखा यह देखकर राजमाता की आंखें भर आई थीं और उनकी आंखों से आंसू की दो बूंदें गिर पड़ी यह आंसू जब दासी की पीठ पर गिरे तो दासी ने पूछा आप क्यों रो रही है राजमाता
राजमाता ने कहा तेरे जैसी मेरी भी बेटी है उसके सिर में भी पद्धति था तेरे सिर में भी पद है यह देखकर मुझे उसकी याद आ गई तब किसी ने कहा मैं ही आपकी बेटी हूं दशा माता के कोप से मेरे बुरे दिन चल रहे हैं इसलिए यहां चली आई माता ने कहा बेटी तूने यह बात हमसे क्यों छिपाई दासी बोली मां मैं सब कुछ बता देती तो मेरे बुरे दिन नहीं हटते आज मैं दशामाता का व्रत करूंगी और उनसे अपनी गलती की क्षमा याचना करूंगी अब राजमाता ने बेटी से पूछा हमारे जमाई राजा कहां है बेटी बोली वह इसी गांव में किसी तेली के घर काम कर रहे हैं गांव में उनकी को
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आ गई और सब लोग उन्हें महल में लेकर आए जमाई राजा को स्नान कराया नए वस्त्र पहनाएं और पकवान बनवाकर उन्हें भोजन कराया गया अब दशा माता के आशीर्वाद से राजा नल और दमयंती के अच्छे दिन लौट आए कुछ दिन वहीं बिताने के बाद उन्होंने कहा कि अब हम अपने राज्य वापस जाएंगे दमयंती के पिता ने खूब सारा धन लाभ कर हाथी घोड़े आदि देकर बेटी जावाई को विदा कर दिया रास्ते में वही जगह आई जहां रानी ने मछलियों को भूना था और राजा के हाथ से चीन के झपट्टा मारने से भोजन जमीन पर आ गिरा था तब राजा ने कहा तुमने सोचा होगा कि मैंने अकेले भोजन कर लिया लेकिन असल में चीन ने झपट्टा मारकर
गिरा दिया था रानी ने भी अपनी पूरी बात बताई बोली आपने सोचा होगा कि मैंने मछलियां भूनकर अकेले खाली होंगी लेकिन वह तो जीवित होकर नदी में चली गई थी कि चलते-चलते राजा की बहन का गांव आया राजा ने बहन के यहां खबर भेजी खबर देने वाले से बहन ने पूछा कि वह कैसे हाल से आए हैं उसने बताया बहुत अच्छी दिशा में है उनके साथ हाथी घोड़े लाव-लश्कर है यह सुनकर राजा की बहन मोतियों का थाल सजाकर लाई तभी दमयंती ने धरती माता से प्रार्थना की और बोली मां आज मेरी अमानत मुझे वापस दे दो यह कहकर उसे उस जगह को खुदा जहां उसने कांधा रोटी गाड़ दिया था खोजने पर
रोटी सोने की ओर कांदा चांदी का हो गया यह दोनों चीजें उसने बहन की थाली में डाल दी और आगे चलने की तैयारी करने लगे वहां से चलकर राजा अपने मित्र के घर पहुंचे मित्र ने पहले के समान ही उनका खूब आदर-सत्कार और सम्मान किया रात को सोने के लिए उन्हें उसी शयनकक्ष में भेजा था है बॉडी मलिक मोती के हार निकल जाने वाली बात से राजा को नींद नहीं आई आधी रात के समय वही मॉर्निंग वाली खूंटी ने हार को वापस उगलने लगी तो राजा ने अपने मित्र को जगाया और रानी ने मित्र की पत्नी को जगा कर दिखाया कि आपका हार इस ने निगल लिया था और आपने सोचा होगा कि हर हमने चुराया है
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दूसरे दिन सुबह नित्यकर्म से निपटकर वहां से चल दिए भील राजा के यहां पहुंचे और अपने पुत्रों को मांगा तो भी राजा ने देने से मना कर दिया गांव के लोगों ने उनके बच्चों को वापस दिलवा या जब नल दमयंती अपने बच्चों को लेकर राजधानी के निकट पहुंचे तो नगरवासियों ने लाव-लश्कर के साथ उन्हें आते हुए देखा सभी ने बहुत प्रसन्न होकर उनका स्वागत किया और गाजे-बाजे के साथ उन्हें महल में पहुंचाया राजा का सारा ठाट-बाट पहले जैसा हो गया दशा माता ने राजा नल दमयंती पर जैसा पहले को किया वैसा किसी पर मत करना और बाद में जैसी कृपा करी वैसी सब पर हां बोल दशा माता की जय