Prabodhini Ekadashi is also known as Dev Uthani Ekadashi and devutthana ekadashi.
Prabodhini Ekadashi Or kartiki ekadashi हिन्दुओं द्वारा मान्य एक महत्वपूर्ण एकादशी व्रत में से एक है। इसे देव उठानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, और यह तिथि पर आती है, जो हिन्दू पंचांग के पारंपरिक माह ‘कार्तिक’ के शुक्ल पक्ष (चंद्रमा के बढ़ते हुए चरण) की एकादशी तिथि में होती है। यह अक्टूबर-नवम्बर महीने में आती है।
dev uthani ekadashi 2023 Date and Time Schedule
देवउथान एकादशी: 23 नवम्बर 2023 परण समय: 06:18 से 08:38 (24 नवम्बर 2023) परण दिवस के द्वादशी का समापन: 19:06 एकादशी तिथि आरंभ: 22 नवम्बर 2023 को 23:03 बजे एकादशी तिथि समापन: 23 नवम्बर 2023 को 21:01 बजे
Why dev uthani ekadashi Matters
Prabodhani Ekadashi की पहली कथा भगवान ब्रह्मा द्वारा नारद को सुनाई गई थी। इस कथा को ‘स्कंद पुराण’ में विस्तार से व्याख्यान किया गया है।
also, इस एकादशी का हिन्दुओं के लिए बड़ा महत्व है क्योंकि इसे शुभ कार्यों के आरंभ का सूचक माना जाता है, जैसे कि विवाह, गृह प्रवेश, आदि।
इसके अलावा, प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके भक्त उद्धारण या ‘मोक्ष’ प्राप्त कर सकते हैं और मृत्यु के बाद सीधे ‘वैकुण्ठ’ में जा सकते हैं, यह विश्वास के अनुसार।
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The dev uthani ekadashi Vrat katha
dev uthani ekadashi कथा में एक बार की बात है, जब एक राजा राज्य में एकादशी व्रत के पालन को अत्यंत महत्वपूर्ण मानता था। इस दिन, राज्य में किसी को भी भोजन नहीं मिलता था। then एक दिन, एक नौकरी के लिए आगर्हर्णी करने आया, और राजा ने उसे नौकरी देने के लिए शरणागत किया, लेकिन उसने एक शर्त रखी कि dev uthani ekadashi के दिन भोजन नहीं किया जाएगा।
कुछ दिनों बाद, एकादशी के दिन, जब सभी लोग उपवास कर रहे थे, वह भोजन के लिए राजा के पास गया और उसने कहा कि फल उसकी भूख को तृप्त नहीं कर सकते और उसे भोजन की आवश्यकता है। राजा ने पहले की तरह उसके साथ बैठक कर उपवास करने की शर्त रखी।
Vrart katha continue…
इसके परिणामस्वरूप, दोनों के बीच एक अद्वितीय कथा विकसित हुई, जो भगवान के प्रति वास्तविक भावना की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। राजा ने भी devutthana ekadashi पर उपवास करना शुरू किया और आखिरी पल में स्वर्ग की प्राप्ति की।
एक दिन, वह और अनाज मांगने गये, जिस पर राजा हैरान हो गये। राजा ने पूछा कि इस बार तुम्हें और अनाज क्यों चाहिए। then उस आदमी ने बताया कि भगवान को भूख लगी थी और पिछले बार दिया अनाज उनकी भूख नहीं मिटा सका, इसलिए और चाहिए। राजा बेहद हैरान थे और उसके शब्दों पर विश्वास नहीं किया। then उसने उस आदमी को साथ ले जाने का निर्णय लिया।
घर पहुंचकर, उसने नहाया और भोजन तैयार किया, फिर भगवान को आमंत्रित किया। लेकिन इस बार, भगवान नहीं आए। रात तक भगवान का इंतजार किया, लेकिन वह नहीं आए।
Vrart katha of dev uthani ekadashi continue…
राजा एक पेड़ के पीछे छिपे हुए सब देख रहे थे। आखिरकार, उन्होंने कहा, ‘हे भगवान, अगर तुम खाने नहीं आओगे, तो मैं नदी में कूद कर अपनी जान दे दूंगा।’ फिर भी, भगवान नहीं आए, then इस पर वह नदी की ओर बढ़ने लगे। जब वह नदी तक पहुंचे, then भगवान प्रकट हुए। उन्होंने साथ में भोजन किया और भगवान से आशीर्वाद मांगा।
then इस घटना से राजा को यह ज्ञान हुआ कि भगवान को भक्ति की दिखावट की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि आपके दिल की सच्ची भावना की। इसके बाद, राजा ने भी सच्चे दिल से devutthana ekadashi का उपवास करना शुरू किया और आखिरी पल में स्वर्ग की प्राप्ति की।
Which mantra we have on devutthana ekadashi Vrat katha
“उत्तिष्ठ गोविंदा त्याज निद्रां जगत्पतये। उत्थिते चेष्टते सर्वं उत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। शरणाणि च पुष्पाणि गृहाण मां केशव।”
“उठो, हे गोविंद! सोना छोड़ो और जगत्पति की ओर आओ। जब तुम उठो, तो सब कुछ चेष्टित होता है, उठो, हे माधव! और मुझे गोविंद! तुम्हारे शरणगत होने के फूल प्रदान करो।”
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देवोत्थान एकादशी क्यों मनाई जाती है?
इस पुण्यकालिन दिन, भगवान विष्णु चार महीनों की गहरी निद्रा से जागते हैं, जिसे देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। आम भाषा में, also इसे देवउठन ग्यारस या देवउठन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
dev uthani ekadashi व्रत में क्या खाना चाहिए?
भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत में केला, आम, अंगूर, और अन्य सूखे मेवे जैसे बादाम, पिस्ता, आदि का सेवन किया जा सकता है। इस व्रत के दिन then आहार खाने से भक्तिगण भगवान की प्रसन्नता प्राप्त करते हैं।
कौन सी एकादशी नहीं करनी चाहिए?
हिंदू रीति और रिवाजों के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को धार्मिक कार्यों से दूर रहना चाहिए। also इस अवस्था में महिलाएं निर्जला एकादशी व्रत अवश्य नहीं रख सकती हैं।
Conclusion
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को devutthana ekadashi पड़ती है। then द्वादाशी तिथि को भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप के साथ माता तुलसी का विवाह( Tulsi Vivah ) भी किया जाता है। also जिसे तुलसी विवाह भी कहा जाता है।