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Pitra dosh क्या है remove Pitra Dosh without pandit फ्री निवारण विधि

pitra doa

हिंदू धर्म में Pitra Dosh का विचार बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह इस बात से संबंधित है कि पूर्वज, हमारे जीवन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं हिंदू मान्यता के अनुसार, किसी व्यक्ति की मृत्यु  होने के बाद , उसकी आत्मा पितरों के रूप में विराजमान रहती है

उन्हें पूजा  करना और उनकी कृपा प्राप्त करना महत्वपूर्ण माना जाता है। पित्र दोष उन्हीं आत्माओं के संकट और प्रभावों को दर्शाता है जिन्हें दूर करने के लिए निवारण की आवश्यकता होती है।

पितृ दोष शांति के उपाय

पितृ दोष उस नकारात्मक प्रभाव को संदर्भित करता है जो तब होता है जब वे दुखी or अप्रसन्न होते हैं। then इसका मतलब यह है कि उनकी अप्रसनता  हमारे दुख का कारण बन सकता  है। but पितृ दोष दूर करने के कुछ उपाय हैं जिनसे हम उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। 

हिंदू पौराणिक कथाओं में ब्रह्म पुराण के अनुसार, आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की पूर्व संध्या पर। यमराज (मृत्यु के देवता) सभी आत्माओं को पृथ्वी पर आने की अनुमति देते हैं। ताकि वे अपने बच्चों द्वारा दिया गया खाना खा सके।

then उनके बच्चे श्राद्ध में ऐसा नहीं करते हैं तो पितरों की आत्मा अतृप्त या दुखी रहती है और अगर हम अपने पितरों को जल और भोजन नहीं देते हैं then इसका हमारे परिवार और आने वाली पीढ़ियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। but पितर हम से अप्रसन्न होंगे। और हमें पितृ श्राप का भागी बनना पड़ेगा।  

Pitra Dosh को कैसे चेक करे ?

पितृ दोष की जांच के लिए यहां कुछ महत्वपूर्ण संकेत दिए गए हैं

घर में किसी व्यक्ति के भोजन में बार-बार बाल का आना पितृ दोष का संकेत है।

जिन लोगों को नियमित रूप से सपने में अपने पूर्वज या सांप दिखाई देते हैं उनमें पितृ दोष के लक्षण होते हैं।

जिस व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष होता है and उसे अपने जीवन में कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है

like ; पितृ दोष के कारण वैवाहिक जीवन में असंतुलन, विवाह के बाद तलाक। शादियाँ आमतौर पर तय होने पर टूट जाती हैं

कठिन परिश्रम के बावजूद असफलता मिलाना , शुभ कार्य में बाधा आना, बच्चों का बार-बार बीमार पड़ना , परिवार में रोज-रोज झगड़े होना, घर में शांति का अभाव होना।, ये सभी पितृ दोष के लक्षण हैं। 

Pitra Dosh कैसे कम करें?

पितृ दोष के प्रभाव को कम करने के लिए नीचे विभिन्न उपाय दिए गए हैं

thenपितरों को प्रसन्न करने के लिए विशेषकर पितृ पक्ष में शुभ समय पर श्राद्ध और तर्पण कर्म करें। जैसे; पूर्वजों के लिए  गरीबो को कुछ दान करना और  कुशल ज्योतिषियों से परामर्श करना। ये सभी अनुष्ठान शुभ समय (मुहूर्त) पर किए जाने चाहिए।

इन अनुष्ठानों में दिवंगत आत्माओं को भोजन, पानी और प्रार्थना करना, उनका आशीर्वाद मांगना also अपनी गलतियों के लिए प्रायश्चित करना शामिल है।घर में एक पूजा स्थल स्थापित करें, नियमित रूप से or श्रद्धा भाव से  पितृ पूजा करें।

पितृ थितियाँ जैसे पूर्णिमा,आमावस्या के दिन विशेष पूजा करवाने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। घर में तुलसी का पौधा लगाये और  प्रतिदिन उसकी पूजा करे। अपने पूर्वजो के लिए श्राद्ध की विधि के अनुसार गया जाकर पिंडदान करे। 

How to remove Pitra Dosh without pandit

पितृ दोष एक ऐसा कर्मिक दोष होता है जो हमारे पूर्वजों की आत्मा की असंतुष्टि के कारण कुंडली में बनता है। इसे दूर करने के लिए अक्सर पंडित की मदद ली जाती है, लेकिन अगर आप चाहें तो कुछ आसान और सच्चे उपायों से इसे घर पर भी शांति से किया जा सकता है

1. नियमित पिंडदान और तर्पण करें (घर पर)

हर अमावस्या या पितृ पक्ष में सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।

एक पाटे पर काले तिल, जल और गाय के दूध से तर्पण करें।

“ॐ पितृदेवाय नमः” मंत्र बोलते हुए तीन बार जल अर्पण करें।

तर्पण हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें।

घर में रोज शाम को दीपक जलाएं

तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं।

    “ॐ नमः भगवते वासुदेवाय” का 108 बार जप करें। माना जाता है कि इससे पूर्वजों को शांति मिलती है और दोष धीरे-धीरे शांत हो जाता है।

    3. कुत्ते, गाय और कौवे को भोजन कराएं

    यह परंपरा बेहद पुरानी है or पितरों की आत्मा को भोजन पहुंचाने का माध्यम मानी जाती है।

    • काले कुत्ते को रोटी
    • गाय को हरा चारा या गुड़
    • कौवे को चावल या खीर

    शनिवार or अमावस्या के दिन यह उपाय अवश्य करें।

    पितृ दोष निवारण मंत्र का जाप

    इस मंत्र का नियमित जाप करें:

    “ॐ नर्मदा तटस्थायै स्वाहा पितृदेवताभ्यः स्वाहा”

    इस मंत्र को प्रत्येक दिन 11 बार जपने से पितृ दोष शांति की ओर जाता है।

    Pitra Dosh Nivaran मंत्र जाप करे।  पूरी श्रद्धा के साथ आपको इन Pitra Dosh Nivaran मंत्र का जाप करना चाहिए। पितृ गायत्री मंत्र का जाप सुबह सूर्य उदय के समय 11 माला करनी चाहिए। इससे आपको बहोत फायदा होगा। यह (मन्त्र-1) मंतर निचे दिया गया है।

     पहला मन्त्र -“ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।        

         ते ह नाकं महिमानः सचन्ते यत्र पूर्वे साध्यास्सन्ति देवाः॥”

    दूसरा मन्त्र  – ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः ।। 

    तीसरा मन्त्र  – ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः ।। 

    मन्त्र 4 – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।। 

    Pitra Dosh Related Some faq’s

    Q-1 किस दिन पितरों को जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है ?

    Ans- भौमवती अमावस्या के दिन सुबह गंगाजल से स्नान करने के बाद हाथ में काले तिल, कुशा, जल ,अक्षत,और पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़कर पवितर मन से  पितरों को ध्यान करते हुए then उन्हें आमंत्रित करें और जल को ग्रहण करने की प्रार्थना करें। and ऐसा करने से पितर जल्दी प्रसन्न  होते हैं

    Q-2 क्या पितृ भगवान के समान होते है ?

    Ans- नहीं, पितृ भगवान के समान नहीं होता है। because पितृ देवता हमारे पूर्वजों की आत्माएँ होती है।

    Q-3 पितृ देव और भगवान में क्या में क्या अंतर होता है ?

    Ans- भगवान ईश्वर हैं, जो सृष्टि के संचालक और सबका पालन करते हैं। इनसे बड़ा कोई नहीं होता। जबकि पितृ हमारे पूर्वजो की आत्मा होती है। आत्मा कभी भगवान नहीं होत्ती।

     Q-4 पितर और प्रेत में क्या अंतर होता है ?

    Ans- पितर and प्रेत आत्मा में काफ्फी अंतर होता  है। पितर हमारे पूर्वजों को दर्शाते हैं जो हमारे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन करते है।

    – then हमें आने वाली विपतदा के पहले ही संकेत देते है। 

    वही दूसरी ओर, प्रेत आत्मा हमारा कभी भला नहीं चाहती है  यह आत्मा शरीर के छोड़ने के बाद प्राकृतिक रूप से घूमती है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूत, प्रेत या पिशाच के रूप में व्यवहार कर सकती है। 

    Q- 5 पितर कितने प्रकार के होते हैं ?

    Ans- पितृ चार प्रकार के होते है।      

    1. जुज्जारू पितृ – जो युद्ध में मृत्यु को प्रात हुए हो। and ये बहुत शक्तिशाली होते है।    

    2.देव पितृ –  जिनकी मृत्यु  80 की आयु के बाद हुई हो or जिह्वाने ने अच्छे क्रम किए हो, इन्हे  देवतुल्ये पितृ कहते है।    

    3.उत् पितृ – जिनकी सादी ना हुई हो, 90 की आयु से पहले मृत्यु हुई हो, अगर सादी हुई है तो बच्चे ना हो, खासकर लड़का ना हुआ हो, 

    या उनकी कोई इच्छा अधूरी रही हो,  

    4.बाल पितृ – जो बच्चे अपनी माँ के गर्भ में मरे हो या जन्म के बाद 1-11 वर्ष के बिच में मृत्यु को प्राप्त हुए हो, तो हम इन्हे बाल पितृ या देवी पितृ कहते है। 

    निष्कर्ष ;

    हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में “पितृ दोष” की अवधारणा, महत्वपूर्ण महत्व रखती है। जिससे प्रभावित व्यक्तियों के जीवन में नकारात्मक परिणाम पैदा हो सकते हैं।

    “पितृ दोष की जांच” शब्दार्थ यह सुझाता है कि किसी को यह जानने की इच्छा होती है कि क्या उन्हें अपने पूर्वजन द्वारा प्रभावित किया गया है। and बहुत से लोग ज्योतिषियों की मार्गदर्शन का सहारा लेते हैं।”

    विशेष रूप से निश्चित रीति-रिवाजो or उपायों को आदर करते हैं, ताकि पितृ दोष के प्रभाव को कम किया जा सके and उनके जीवन में सुख-शांति लाई जा सके।

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