शास्त्रों के अनुसार Vat savitri का व्रत सबसे पहले माता सावित्री ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए किया था इसलिए इसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है। सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सावित्री व्रत रखती है।
Also माता सावित्री और सत्यवान की पूजा करती है इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है। मान्यता है कि वट सावित्री के दिन महिलाए निर्जला व्रत करके, बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करें तो उन्हें अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है।
तो आइए जानते हैं vat savitri puja 2024 mein kab hai , vat savitri kitne tarikh ko hai 5 या 6 जून पूजा पर शुभ व्रत पूजा विधि महत्व और इस दिन बरगद की पेड़ की पूजा क्यों होती। आपको यहा सारी जानकारी मिलेंगी। इस लेख को पूरा जरूर पढ़े।
Vat savitri vrat significance
हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला Vat savitri व्रत एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे वे अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखती हैं। इस व्रत को रखने से पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम और समर्पण बढ़ता है, जिससे वैवाहिक जीवन में मधुरता और सुख-शांति आती है।
वट सावित्री व्रत का धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है, क्योंकि यह व्रत सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ा है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वट वृक्ष के नीचे यमराज से वापस प्राप्त किए थे। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ मिलता है,
because वट वृक्ष को देव वृक्ष का स्थान प्राप्त है और इसमें त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का वास माना जाता है। वट वृक्ष की पूजा से कई रोगों का नाश होता है और जीवन को दीर्घायु व स्वस्थ बनाने में मदद मिलती है। also इस व्रत को करने से महिलाओं को आध्यात्मिक शांति also संतोष प्राप्त होता है, and जिससे उन्हें मानसिक और भावनात्मक दृढ़ता मिलती है।
then वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति or परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सदियों से महिलाओं द्वारा मनाया जाता रहा है और इसे एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। and इस व्रत को श्रद्धा और विधिपूर्वक करने से निश्चय ही महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है।
Vat savitri (Vat purnima) 2024 date and time
2024 में Vat savitri Vrat के लिए अमावस्या तिथि 5 जून बुधवार को सायं 7:54 बजे से शुरू होगी और 6 जून गुरुवार को सायं 6:07 बजे समाप्त होगी। अतः, यह व्रत 6 जून गुरुवार को रखा जाएगा।
Vat savitri (Vat purnima) 2024 muhurat
समय | मुहूर्त | विवरण |
---|---|---|
प्रातः 11:30 – 12:02 | अभिजीत मुहूर्त | अत्यंत शुभ |
दोपहर 12:02 – 2:04 | लाव उन्नति मुहूर्त | उत्तम |
दोपहर 2:04 – सायं 3:49 | अमृत मुहूर्त | सर्वोत्तम |
Vat savitri puja samagri
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में वट वृक्ष के पत्ते, अंकुरित चने, चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी, 16 सिंगार, एक जल से भरा हुआ कलश, दूध, लौंग, इलायची, सिक्का, सुपारी, हल्दी की गांठ, दाल, तिल, अक्षत,
Also रोली, चंदन, कच्चा सूत या कलावा, आरती की थाली, कपूर, धूप, हाथ का पंखा, कथा की पुस्तक, और वाट सावित्री व्रत का एक फोटो शामिल है।
Vat savitri puja vidhi
यह पूजन ज्येष्ठ पूर्णिमा को किया जाता है, therefore इसे वहाँ पर वाट पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह पूजन दोपहर 12:00 बजे के बाद किया जाता है। also तब तक हमें एकदम निराजल and निराहार रहना होता है। लेकिन यदि आपको कोई प्रॉब्लम है तो आप उसे दूध, आदि फल ले सकते हैं।
आपको 16 श्रृंगार करने चाहिए, मेहंदी लगानी चाहिए, महावर आदि जितना ज्यादा हो सके उतना श्रृंगार करें। तैयार होने के बाद वाट वृक्ष के पास जाएं। then वहाँ कोई भी प्रकार की कोई गंदगी दिखाई देती हो तो वहाँ साफ करें।
उसके बाद, हमें वट वृक्ष पर एक फेरी देते हुए जल चढ़ाना होता है। इस जल में आप दूध मिला सकते है। सबसे पहले भूमिका शुद्धिकरण करने के बाद में स्वास्तिक बनाया जाता है। आप यहाँ पर हल्दी, कुमकुम, थोड़ी सी दाल, थोड़े से तिल , दलिया के साथ एक कलश की स्थापना करें।
मिट्टी का कलश बनाएं, जिसमें जल भरें, फिर उसमें लौंग, इलायची, सिक्का, सुपारी, हल्दी की गांठ, or अक्षत डालकर पंचपल्लव लगा लें। and एक पत्र में थोड़े काले तिल डालकर एक दीप रखें। फिर देवी-देवताओं का, तीनों देवीयों का और त्रिदेव का पूजन करें, और उनके बाद में पितृ देवों का ध्यान करें।
अंत में आरती उतारें और कुछ दक्षिणा अर्पित करें। then वाट वृक्ष के नीचे बैठें और उसके गले लगें। एक धागा उसके तन के चारों or बांधना अत्यंत शुभ माना जाता है। also यह रस्म प्राचीन बड़ वृक्ष के नीचे की जाती है, जो बहुत ही शुभ होती है।
वटवृक्ष की पूजा का महत्व
- धार्मिक मान्यता: हिंदू धर्म के अनुसार, वटवृक्ष को देव वृक्ष का स्थान प्राप्त है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु also महेश निवास करते हैं।
- तुलसीदास की रचनाएं: तुलसीदास जी ने वटवृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है, जो दीर्घायु प्रदान करता है।
- सावित्री की कथा: सावित्री ने इसी वटवृक्ष के नीचे सत्यवान के प्राण लौटाए थे, therefore इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक है।
Vat savitri vrat katha
एक समय की बात है एक अश्वपति नाम के राजा थे उनकी कोई संतान नहीं थी राजा ने संतान प्राप्ति के लिए अनेकों यज्ञ किए जिसके फलस्वरूप उन्हें एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति हुई राजा ने कन्या का नाम सावित्री रखा।
समय बीतता गया और सावित्री विवाह योग्य हो गई एक दिन राजा ने सावित्री से कहा सावित्री अब तुम विवाह योग्य हो गई हो also स्वयं अपने लिए योग्य वर की खोज करो पिता की बात मानकर सावित्री मंत्रियों के साथ यात्रा पर निकल गई।
जंगलों में घूमने के बाद वह राजमहल लौट आई। संयोगवश उस समय उसके पिता के साथ देवर्षि नारद भी थे। सावित्री ने उन्हें प्रणाम किया राजा अश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा and सावित्री बोली पिताजी तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे सत्यवान मेरे लिए योग्य वर है।
मैंने मन से उन्हें अपना पति चुना है सावित्री की बात सुनकर देवर्षि नारद चौंक उठे और बोले राजन सावित्री ने तो बहुत बड़ी भूल कर दी है यह सुन अश्व प्रति चिंतित हो गए और बोले हे देवर्षि सत्यवान में ऐसा कौन सा अवगुण है
इस पर नारद जी ने कहा राजन सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अपनी दृष्टि खो चुके हैं राजन सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान अल्पायु है। 12 वर्ष की आयु में से अब उसके पास केवल एक वर्ष की आयु शेष रह गई है।
Vat savitri ki kahani aage padhe
नारद जी की बात सुनकर अश्वपति ने सावित्री को समझाया कि वह किसी दूसरे उत्तम गुणों वाले पुरुष को अपने पति के रूप में चुन ले। सावित्री बोली पिताजी नारी अपने जीवन में केवल एक ही पति का वरण करती है अब चाहे जो भी हो मैं किसी दूसरे को अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती।
पुत्री की हठ के आगे पिता विवश हो गए then सावित्री का सत्यवान के साथ पूरे विधि-विधान से विवाह करा दिया गया। विवाह के पश्चात ही सावित्री ने अपने पति और सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था।
सावित्री के मन का भय बढ़ता जा रहा था नारद जी के कहे अनुसार जब उसके पति की आयु मात्र चार दिन बच्ची तब सावित्री ने तीन दिन पहले से व्रत रखना प्रारंभ कर दिया अंतत है वह दिन भी आ गया। जब सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी।
चौथे दिन जब सत्यवान लकड़ियां लेने वन को जाने लगा तब सावित्री बोली हे नाथ मैं भी आपके साथ वन को चलूंगी सत्यवान के मना करने पर भी वह सास ससुर की आज्ञा लेकर अपने पति के साथ वन को चली गई। वन में सत्यवान ने जैसे ही पेड़ से लकड़ी काटना शुरू किया तो उसके सर में असहनीय पीड़ा होने लगी है और वह पेड़ से उतर गया।
सावित्री समझ गई कि उसके पति का अंत समय निकट है अतः उसने अपने पति का सिर अपनी गोद में रख लिया लेटने पर सत्यवान अचेत हो गया। सावित्री चुपचाप आंसू बहाती also ईश्वर से प्रार्थना करने लगी तभी उसे लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखाई दिया वह साक्षात यमराज थे। सावित्री बोली महाराज आप कौन हैं। यमराज ने उत्तर दिया सावित्री ने यमराज हूं then तुम्हारे पति के प्राण हरने आया हूं।
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then सावित्री बोली प्रभु सांसारिक प्राणियों को लेने तो आपके दूत आते हैं क्या कारण है कि आज आपको स्वयं आना पड़ा यमराज ने उत्तर दिया सत्यवान अत्यंत धर्मात्मा तथा गुणों का सागर है मेरे दूत इन्हें ले जाने के योग्य नहीं है इसलिए मुझे स्वयं आना पड़ा ऐसा कहकर यमराज ने सत्यवान के शरीर से प्राणों को निकाला और उसे लेकर वह दक्षिण दिशा की ओर यमलोक को जाने लगे।
सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी सावित्री को अपने पीछे आता देख यमराज बोले सावित्री तुम मेरे पीछे कहां आ रही हो। then सावित्री बोली मेरे पति जहां जाएंगे मैं भी वहीं जाऊंगी यहि मेरा धर्म है।
यमराज के बहुत समझाने पर भी सावित्री नहीं मानी उसके पतिव्रता धर्म की निष्ठा को देखकर यमराज बोले तो अपने पति के बदले कोई भी वरदान मांग लो सावित्री ने अपने ससुर की आंखें मांगी और यमराज ने तथास्तु कहा and आगे चले फिर से सावित्री उनके पीछे-पीछे चल दी।
तब यमराज ने सावित्री से कहा एक or वर मांग लो तब सावित्री ने अपने ससुर के राज्य को वर के रूप में मांग लिया और यमराज ने तथास्तु कहा और आगे चल दिए सावित्री फिर भी यमराज के पीछे चलने लगी। अब यमराज बोले चलो और एक वर मांग लो तब सावित्री ने अपने पिता के लिए पुत्रों का वरदान मांगा यमराज ने तथास्तु कहकर सावित्री को वापस लौटने को कहा।
but सावित्री नहीं मानी and फिर उनके पीछे चल दी अब यमराज बोले सावित्री तुम मुझसे अपने पति के प्राणों के अलावा कोई भी वरदान मांगो तब सावित्री ने वर माँगा की मुझे सत्यवान से सौपुत्र प्राप्त हो। इस बार भी यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ने लगे परंतु सावित्री फिर उनके पीछे चल दी।
Vat purnima ki ya vat savitri ki katha aage padhe
अब यमराज बोले मैंने तुम्हें सभी मन वांछित वर दे दिए अब तुम लौट जाओ तब सावित्री बोली महाराज आपने मुझे सत्यवान से 100 यशस्वी पुत्रों का वरदान दिया है और सत्यवान के बिना पुत्र कैसे संभव होगा ऐसा कहकर सावित्री ने यमराज को उलझन में डाल दिया।
तब यमराज बोले सावित्री मैं तुम्हारी पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर सत्यवान के प्राण छोड़ रहा हूं also साथ-साथ तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हारी यह कहानी युगों-युगों तक सुनाई जाएगी यह कहकर यमराज ने सत्यवान के प्राण तोड़ दिए।
And यम लोक को लौट गए। तब सत्यवान और सावित्री अपनी कुटिया में पहुंचे वहां उनके माता-पिता की आंखों की दृष्टि भी लौट आई थी then उन्हें अपना खोया हुआ राज्य उन्हें मिल गया था दोस्तों यह थी वट सावित्री की व्रत कथा यह व्रत करने और कथा सुनने से विवाहित स्त्रियों के जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और उनके पति को लंबी आयु मिलती है
Conclusion
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो न केवल पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है, बल्कि इसके धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को भी दर्शाता है।
व्रत की तिथि, पूजा विधि, और शुभ मुहूर्त का पालन करते हुए महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करती हैं।
इस व्रत के दौरान सावित्री और सत्यवान की कथा सुनना अनिवार्य होता है, जिससे इस पर्व की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। वट सावित्री व्रत की परंपराओं और विधियों को सही ढंग से अपनाने से जीवन में सकारात्मकता और खुशियां आती हैं।
FAQs- Frequently Asked Question
Vat savitri ki puja periods ya pregnent mahilaye kar sakti hai ya nhi ?
अगर आपको पीरियड आती है तो आप कोई कर सकते किसी अन्य से आप इस पूजन को कर सकते हैं प्रेग्नेंट है तो कोई भी कठिन व्रत आप बिल्कुल ना करें नेक्स्ट ईयर आप इस व्रत को अपने अनुसार कैसा भी कर सकते हैं लेकिन प्रेग्नेंट है तो कोई भी व्रत आप कठिन ना लें
How to do vat savitri puja without banyan tree
वैसे तो vat savitri puja बरगद के पेड़ के पास जाकर की की जाती हैं लेकिन अगर आप किसी कारण से नहीं जा सकते हैं तो व्रत एवं पूजन से पहले दिन आप बरगद के पेड़ की एक टहनी लें आये then उसे मिट्टी के गमले में लगा लें।
या फिर आप चाहे तो किसी कलश के अंदर भी इस टहनी को लगा सकते हैं आपके पास टहनी भी उपलब्ध नहीं है तो आप यही पूजा तुलसी के पौधे को लेकर भी कर सकते हैं।
How to do vat savitri puja at home
जैसे आप बरगद के पेड़ के निचे विधिवत पूजा करते है। ठीक वैसे ही आप अपने घर पर vat savitri की puja कर सकते है। इसके लिए आपको पहले दिन नर्सरी से एक बरगद का पौधा ले आये।
या बरगद के पेड़ की टहनी ला कर उसे एक गमले में लगा दे। अगर यह कार्य भी आपके लिए संभव नहीं है तो आप तुलसी के पौधे के साथ उसी तरीके से पूजा समाप्त कर सकते है।
When is vat savitri purnima
Vat savitri purnima ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस साल 2024 में यह पूर्णिमा तिथि 5 जून बुधवार को सायं 7:54 बजे से शुरू होगी और 6 जून गुरुवार को सायं 6:07 बजे समाप्त होगी।