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Maha Kumbh 2025: 13 Akharas Mein Jane Kon Karega Shahi Snan

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Maha Kumbh हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और पवित्र आयोजन, 13 जनवरी 2025 से 25 फरवरी 2025 तक प्रयागराज में आयोजित होने वाला है। यह महाकुंभ, जो 144 वर्षों में एक बार आता है, दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभाओं में से एक है।

इस मेले का नाम सुनते ही हमें पुरानी फिल्मों, कहानियों और मशहूर कहावत “कुंभ के मेले में बिछड़ना” की याद आती है। क्या आपने सोचा है कि यह मेला इतना प्रसिद्ध क्यों है? चलिए जानते है।

कुंभ मेले की समुद्र मंथन से जुड़ी कथा की कहानी में अमृत कलश की चार बूंदें हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में गिरीं, और इन स्थानों को पवित्र तीर्थ स्थल बना दिया। यह मेला इन्हीं स्थानों पर ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति के आधार पर आयोजित होता है।

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Maha Kumbh 2025 क्यों है खास?

2025 का महाकुंभ इसीलिए खास है क्योंकि यह 144 साल के लंबे चक्र के बाद आयोजित हो रहा है। इसके आयोजन स्थल को सरकार ने टेंपरेरी जिला घोषित किया है, जिससे व्यवस्थाएं बेहतर तरीके से संचालित हो सकें।

महाकुंभ की तैयारियों को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़े कदम उठाए हैं। महाकुंभ क्षेत्र को एक अस्थायी जिला घोषित किया गया है, जिसे “महाकुंभ मेला जिला” नाम दिया गया है। यह जिला प्रयागराज की चार तहसीलों और 67 गांवों को मिलाकर बनाया गया है।

महाकुंभ के दौरान यह जिला प्रशासनिक सहूलियत के लिए अस्तित्व में रहेगा और आयोजन के समाप्त होने के बाद इसे फिर से प्रयागराज में शामिल कर दिया जाएगा। or कुंभ मेला UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल है

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Maha Kumbh Mela 2025 date and place

महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में होगा। also यह मेला हर 12 वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है और इस बार इसका शुभारंभ 13 जनवरी 2025 से होगा।

यह मेला करोड़ों श्रद्धालुओं और साधु-संतों के संगम स्थल पर एकत्रित होने का प्रतीक है or जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है।

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Maha Kumbh 2025 शाही स्नान की तिथियां-

महाकुंभ 2025 का आयोजन इस बार प्रयागराज में होने जा रहा है, or यह अवसर वर्षों में एक बार आता है। महाकुंभ का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यधिक है।

इस विशेष आयोजन में शाही स्नान का महत्व बेहद खास है, and जो पवित्रता, मुक्ति और पुण्य का प्रतीक है। महाकुंभ के शाही स्नान में भाग लेने से व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिलती है, और उसके पाप समाप्त हो जाते हैं। then इस बार के महाकुंभ में शाही स्नान की तिथियां निर्धारित की जा चुकी हैं, or जो विशेष अवसर लेकर आई हैं।

13 जनवरी 2025 – पूर्णिमा (पुष्कर पूर्णिमा)

14 जनवरी 2025 – मकर संक्रांति

29 जनवरी 2025 – मोनी अमावस्या

3 फरवरी 2025 – बसंत पंचमी

12 फरवरी 2025 – माघी पूर्णिमा

26 फरवरी 2025 – महाशिवरात्रि स्नान

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Maha Kumbh Mela 2025 last Date

महाकुंभ मेला 2025 की अंतिम तिथि 26 फरवरी 2025 है। इस दिन महाशिवरात्रि के अवसर पर अंतिम शाही स्नान होगा। यह दिन महाकुंभ के सभी धार्मिक अनुष्ठानों and स्नानों का समापन करेगा।also महाशिवरात्रि का शाही स्नान महाकुंभ का सबसे पवित्र स्नान माना जाता है।

महाकुंभ, अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ में अंतर

हाकुंभ, अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और भव्य आयोजन हैं। इनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। so आइए जानते हैं इन तीनों के बीच अंतर और इनके आयोजन के विशेष पहलू।

महाकुंभ, अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ में अंतर
महाकुंभ, अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ में अंतर

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महाकुंभ मेला

दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ ही है। यह हर 144 साल में केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। and महाकुंभ का आयोजन तब होता है also जब ग्रहों की स्थिति विशेष रूप से बृहस्पति वृषभ राशि और सूर्य मकर राशि में होते हैं। इसे 12 पूर्ण कुंभ के बाद मनाया जाता है।

महाकुंभ के आयोजन को लेकर देश-विदेश में श्रद्धालुओं के बीच खास उत्साह रहता है। वर्ष 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होगा। and इस दौरान कुल छह शाही स्नान होंगे। also मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पूर्ण कुंभ मेला

पूर्ण कुंभ हर 12 साल में केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। यह ग्रहों की विशेष स्थिति पर आधारित होता है।also कुंभ और पूर्ण कुंभ में अंतर यह है कि पूर्ण कुंभ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज में होता है।

अर्ध कुंभ मेला

अर्ध कुंभ हर 6 साल में प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित होता है। यह कुंभ के मुख्य आयोजनों में से एक है और श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक यात्रा का अवसर प्रदान करता है।

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सबसे पहले Maha Kumbh 2025 का शाही स्नान कोन करेगा।

महाकुंभ और कुंभ के दौरान सबसे पहले पंचायती महानिर्वाणी अखाडे को शाही स्नान की अनुमति है and वहीं हरिद्वार में कुंभ लगने पर निरंजनी अखाड़े सबसे पहले शाही स्नान करता है।

उज्जैन और नासिक में जब भी कुंभ मेला लगता है तो जूना अखाड़े का सबसे पहले शाही स्नान करने की अनुमति है।

so साल 2025 में होने वाले महाकुंभ के दौरान सबसे पहले पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े को सबसे पहले शाही स्नान की अनुमति होनी चाहिए महाकुंभ में जो भी अखाड़ा सबसे पहले डूबकी लगाता है।

उस अखाड़े के महात या सर्वोच्च पदासन संत सबसे पहले पानी में उतरते हैं also अपने अखाड़े के इष्ट देव को सबसे पहले स्नान करवाते हैं।

इसके बाद खुद स्नान करते हैं। then अखाड़े के अन्य साधु सन्यासी भी पवित्र नदी में स्नान करते हैं इसके बाद बारी-बारी से सभी 13 अखाड़ों के नागा साधु स्नान करते हैं नागा साधुओं के स्नान करने के बाद ही अन्य लोगों को डुबकी लगाने की इजाजत दी जाती है।

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13 Akharas in kumbh mela Maha Kumbh के प्रमुख अखाड़े: शैव, वैष्णव और सिख

मूलतः कुंभ या अर्धकुंभ में साधु संतों के कुल 13 अखाड़ों द्वारा भाग लिया जाता है।also अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है।

13 अखाड़ों अखाड़ों में से सात शैव, 3 वैष्णव or तीन उदासीन संप्रदाय के अखाड़े हैं। अखाड़ों के बारे में जानते हैं विस्तार से।

13 Akharas in kumbh mela
13 Akharas in kumbh mela

शैव संप्रदाय के 7 अखाड़े

  1. श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा: इस अखाड़े ने कुंभ मेले में शाही स्नान और पेशवाई जैसे पुराने शब्दों को बदलकर नई शुरुआत की है। and इस बार, शोभा यात्रा को “कुंभ मेला छावनी प्रवेश” और स्नान को “कुंभ अमृत स्नान” के रूप में परिभाषित किया गया।
  2. पंच दशनाम जुना अखाड़ा: यह अखाड़ा 5 लाख साधु संतों के साथ सबसे बड़ा अखाड़ा है। इसके साधु संत मुगलों और अंग्रेजों से भी लड़े थे। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार करना है।
  3. श्री निरंजनी पंचायती अखाड़ा: इस अखाड़े में लाखों नागा साधु or सन्यासी होते हैं। इसके सदस्य उच्च शिक्षा प्राप्त होते हैं, also यह अखाड़ा भगवान शिव के बेटे, कार्तिकेय को इष्टदेव मानता है।
  4. शंभू पंचायती अटल अखाड़ा: 14वीं शताब्दी में खिलजी और तुगलक शासकों से संघर्ष करने वाले इस अखाड़े में 2 लाख से ज्यादा नागा साधु हैं। then यह अखाड़ा महाकुंभ में भगवान गणेश की शोभा यात्रा के लिए प्रसिद्ध है।
  5. तपो निधि आनंद अखाड़ा: इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य ईश्वर की भक्ति और मोक्ष है। इस अखाड़े में फिल्म देखना और फिल्मी गीत सुनना अपराध माना जाता है।
  6. पंचाग्नि अखाड़ा: इस अखाड़े की इष्ट देवी गायत्री है also इसमें केवल ब्राह्मणों को सन्यास की दीक्षा दी जाती है। यहां मांस और शराब से दूर रहना पड़ता है।
  7. पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा: इस अखाड़े के साधु संतों का मुख्य उद्देश्य समाज से बुराई को दूर करके ईश्वर की भक्ति में रमना है। then इसमें केवल शुद्ध मन से गुरु की सेवा करने वाले को प्रवेश मिलता है।

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वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े:

  1. दिगंबर अनी अखाड़ा: इस अखाड़े के साधु संतों ने कई युद्धों में भाग लिया है। इसमें मुख्य रूप से हनुमान, राम और कृष्ण की पूजा होती है। इस अखाड़े की संरचना पंचायती व्यवस्था पर आधारित है।
  2. पंच निर्मोही अनी अखाड़ा: इस अखाड़े के साधु संतों ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अनेक युद्ध लड़े। and यह अखाड़ा गुरु नानक देव की शिक्षाओं का पालन करता है और इसकी शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं।
  3. निर्वाणी अनी अखाड़ा: यह अखाड़ा भारतीय संस्कृति का प्रचार करता है and इसके साधु संत समाज में फैल रहे हैं। यह अखाड़ा सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत है।

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उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े

  1. पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा: इस अखाड़े के साधु संत हर दिन तीन बार गंगा स्नान करते हैं और केवल एक बार भोजन करते हैं। also यह अखाड़ा सनातन धर्म and सिख पंथ की परंपराओं का पालन करता है।
  2. पंचायती नया उदासीन अखाड़ा: इस अखाड़े के साधु गुरु नानक देव की परंपराओं का पालन करते हैं or हर काम में ईमानदारी और सेवा भावना से रहते हैं। इस अखाड़े का रजिस्ट्रेशन 1913 में हुआ था और इसने देश की आजादी के आंदोलन में भी भाग लिया था।
  3. निर्मल पंचायती अखाड़ा: इसकी स्थापना 1862 में हुई थी और इसका संबंध गुरु नानक देव जी से माना जाता है। यह अखाड़ा हरिद्वार के कनखल में स्थित है then इसकी शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं। निर्मल संप्रदाय का मुख्य सिद्धांत ईश्वर की एकता और निराकार रूप में विश्वास करना है।

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महाकुंभ से जुड़े रोचक तथ्य

समुद्र मंथन और अमृत की बूंदें: यह आयोजन समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है, जिसमें अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं।

तीर्थराज प्रयागराज: इसे तीर्थ स्थलों का राजा कहा जाता है। also यहां गंगा, यमुना or अदृश्य सरस्वती का संगम होता है।

हर 12 साल में आयोजन: कुंभ मेला हर 12 वर्षों में चारों स्थानों पर बारी-बारी से आयोजित होता है।

विशेष कुंभ: हर 6 साल में प्रयागराज और हरिद्वार में अर्धकुंभ का आयोजन भी किया जाता है।

श्रद्धालुओं की भारी संख्या: 2013 के प्रयागराज कुंभ में लगभग 12 करोड़ लोग शामिल हुए। then इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दुनिया की सबसे बड़ी मानव सभा के रूप में दर्ज किया गया है।

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Conclusion

इस साल का कुंभ मेला अपने आप में अनोखा है क्योंकि यह महाकुंभ 144 साल बाद आयोजित हो रहा है।

प्रयागराज में संगम तट पर होने वाले इस आयोजन में करोड़ों लोग शामिल होंगे। also यहां विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां देखने को मिलेंगी।

कुंभ मेला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। लाखों लोग मेले में भाग लेने आते हैं, जिससे ट्रैवल और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री को बूस्ट मिलता है।

2019 के कुंभ मेले ने 44,200 करोड़ रुपये की आर्थिक गतिविधियों को जन्म दिया था then लाखों रोजगार उपलब्ध कराए थे।

FAQS Frequently Asked Questions 

हरिद्वार में kumbh mela कब आयोजित होता है?

जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं।

उज्जैन में kumbh mela कब आयोजित होता है?

जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।

कुंभ के प्रमुख चार स्थल कौन-कौन से है ?

प्रयागराज: गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल।

हरिद्वार: गंगा नदी के पवित्र तट पर स्थित।

नासिक: गोदावरी नदी के किनारे बसा।

उज्जैन: क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित।

नासिक में कुंभ मेला कब आयोजित होता है?

जब सूर्य और बृहस्पति दोनों सिंह राशि में होते हैं।

प्रयागराज में maha kumbh mela कब आयोजित होता है?

जब बृहस्पति वृषभ राशि और सूर्य मकर राशि में होते हैं।

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