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Dasha Mata कौन है? माता का डोरा कैसे ले। जानिए दशामा की उत्त्पत्ति कथा

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नमस्कार दोस्तो dasha mata का व्रत चैत्र मास के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। दशा माता व्रत 2024, दशा माता की 10 कहानियों के नाम, दशा माता पूजन का मुहूर्त, दशा माता पूजा सामग्री, दशा माता का डोरा – ये सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ हमें दशा माता के विशेष अवसर पर उनकी भक्ति में समर्पित होने के लिए जाननी जरुरी हैं।

then इस ब्लॉग में, हम दशा माता के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करेंगे, जो आपको इस व्रत में सम्पूर्ण सहायक साबित होंगे। इसके साथ ही, हम आपको दशा माता के महात्म्य के बारे में भी जानकारी प्रदान करेंगे। तो चलिए सुरु करते है। 

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Dasha Mata Kon Hai ?

माता शक्ति का एक रूप ही dasha mata है। ऊँट पर आरूढ़, देवी माँ के इस रूप को चार हाथों से दर्शाया गया है। वह क्रमशः ऊपरी दाएं then बाएं हाथ में तलवार और त्रिशूल रखती है। alsoनिचले दाएं और बाएं हाथों में उनके पास कमल और कवच है.

दशा माता का पूजन प्रत्येक स्त्री सुहागिन या विधवा सबको करना चाहिए ,क्योंकि यह पूजन एवं व्रत घर की दशा स्थिति को सुखी समृद्ध रखने हेतु किया जाता है । पूजन में एक विशेष बात होती है की एक हल्दी में रंगा दस गांठे में लगा हुआ धागा होता है।

जिसको दशा माता की बेल कहते हैं इस बेल को पूजन के समय दशा माता को चढ़ा कर पुनः ले लेते हैं। इसको गले में धारण करने का विधान है। इस वर्ष धारण किया गया धागा अगले वर्ष उतार कर पूजा करके पुनः नई बेल धारण करते हैं।

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Dasha Mata Vrat 2024

मान्यता है कि किसी व्यक्ति का बुरी दशा को ठीक करने ले लिए dasha mata vrat रखा जाता है। and जब तक दशा अनुकूल होती है, तब तक व्यक्ति के सभी काम समृद्धि से होते हैं,

लेकिन जब दशा अशुभ होती है।  तो उसके कार्यों में बाधा आने लगती है। also दशामाता का व्रत चैत्र मास के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है इसीलिए दशामाता का व्रत 10 दिन तक चलता है। 

Dasha Mata Kab Hai साल 2024 में,

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दशा माता का व्रत 4 अप्रैल को है, जो साल 2024 में अत्यंत महत्वपूर्ण है। and यह व्रत 3 अप्रैल की शाम 6:30 बजे शुरू होगा then 4 अप्रैल की शाम 4:14 बजे समाप्त होगा। also इस दिन भक्तगण दशा माता की पूजा-अर्चना में लगेंगे and उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। इस पवित्र अवसर पर, भक्तों को ध्यान, श्रद्धा, and निष्काम भाव से दशा माता की आराधना करनी चाहिए, ताकि उन्हें उनके कृपालु आशीर्वाद का अनुभव हो सके।

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Dasha Mata Pujan Ka Muhurt

dosto dasha mata pujan ka muhurt 2024 में सुबह 10:15 से 11:12  बजे तक का समय है। and इस समय में व्रत का आरंभ करना also पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है, and जो व्रत की सफलता को सुनिश्चित करता है। then इस समय का चयन करते समय स्थानीय पंडितों या पंचांग की सलाह ली जा सकती है।

Dasha Mata Ki Katha (दशामा की उत्त्पत्ति की कथा)

Dasha-Mata-Ki-Katha
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सतयुग से Dasha mata की katha का वर्णन है जब देवी सती के बाद माता ने देवी पार्वती के रूप में जन्म लेकर कठिन तपस्या से महादेव को पति के रूप में प्राप्त किया। also माता आदि शक्ति को अपने सही स्वरूप का ज्ञान देने के लिए। and महादेव ने देवी को कई गुप्त विद्या सिखाई आज के रुद्रा मंत्र, डामर मन्त्र ग्रंथ उसी संवाद पर आधरित है।

but ज्ञान देते समय माता ध्यान केंद्रित नहीं कर पाई and शिवाजी ने क्रोधित होते हुए माता को ध्यान केंद्रित करने की विद्या सीखने के लिए मछुआरे के घर जन्म लेने का श्राप दे दिया। then कुछ समय बाद निसंतान मछुआरे को एक समुद्र में जाल के अंदर फैंसी एक छोटे से बच्ची मिली। 

जिसको पुत्र के रूप में उसने अपना लिया तथा मत्स्य नाम लिया। then समय बीतने लगा मत्स्य अज तरुणी हुई तब अपूर्व सौंदर्यवृत्ति, गुणवती तथा सौम्यता से पूर्ण थी। and माता पार्वती को कैलाश छोटे बहुत समय बीत चुका था।

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शिवा जी को भी माता के बिना कैलाश सुना लगे लगा and उन्होंने माता को कैलाश वापस लाने के लिए एक लीला रची शिवाजी ने अपने गण भद्रा जी को बड़ी मछली का रूप लेकर सागर के किनारे भेजा। then बड़ी मछली ने भारी उत्पात मचाया तब वो मछुआरे मुखिया ने कहा जो इस बड़ी मछली का शिकार करेगा इस से मैं अपने पुत्री मत्स्य का विवाह करूंगा।

शिवा जी ने तब नवयुक का रूप धरण कर। बड़ी मछली का शिकार किया तथा महादेव ने मछुआरे के रूप में अपनी शाश्वत पत्नी पार्वती से विवाह किया। also माता को अपने पार्वती स्वरूप का वास्तविक रूप याद दिलाया माता ने भवानी पार्वती का रूप धरण किया

सभी मछुआरों को दर्शन दिए। also उन्होंने मछुआरों की रक्षा का वचन दिया। and अंबा यानी भवानी also आई को मराठी में माता कहते हैं and इसी से अपभ्रंश होके मां अंबा से मुंबई हो गया। then जिससे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का नाम रखा गया है। 

Dasha Mata का वाहन ऊंट कैसे बना ?

मुंबई का दरियाई व्यापार दूर देश तक फैला हुआ था। मछुआरे मध्य समुद्र में रक्षा के लिए मुंबई माता की पूजा करते हैं जो व्यापार के मध्य से पाकिस्तान चीन तक पहुंचे। and कच्छ के कुछ व्यापारी तथा नाविक माता की सफल जल यात्रा के लिए प्रार्थना करने लगे। 

ऊपर की बात का एक प्रमाण भी है भारत में खारे ऊंट की एक अजीब सी प्रजाति रहती है। यह ऊंट समुद्र के चैनल में तैरते हैं। and कभी-कभी हरि तटीय दीपों पर महीनो तक रहते हैं। also यह खारे ऊंट मैंग्रोव पौधों की पत्तियो का भजन करते हैं।

यह ऐसे द्वीपो के पेड़ों तक पहुंचने के लिए नियमित रूप से अरबसागर में तीन-चार किलोमीटर तक तैरते है। इसलिए यह खारे ऊंट रेगिस्तान का ही नहीं also समुद्र का भी जहाज कहा जाता है।

विश्व में कच्छ में ही ऐसे प्रजाति के ऊंट मिलते हैं जो अपने मलिक के वजन को उठा करके तैर सकते हैं। therefore रेगिस्तान तथा समुद्र किनारे माता ने वाहन के रूप में ऊंट के साथ दर्शन दिए।  

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Dasha Mata के चमत्कार 

एक पुराणी कथा अनुसार dasha mata से जुड़े कुछ कार्य और चमत्कार का वर्णन है। रेगिस्तान के अंदर सिंह नामक एक गांव है जो वर्तमान पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है। and दवित्तमल दादा चेकलिया को माता ने दर्शन देकर रक्षा की थी and कहा था की जब याद करेगा तब सहायता करुँगी।

कहानी अनुसार जिसमें जूनागढ़ में रकवाट का शासन था।  सिंह गाओ में काल पढ़ने पर दवित्तमल दादा ने माता की कपड़े से बने ऊंटनी को साथ लेकर सोवार्ष में जूनागढ़ के पास आए। तब राजा रकवाट ने उनसे कर मांगा तथा कपड़े की जोली में जो ऊंट पड़ा था।

उसके बारे में पूछा। तब उन्होंने ने बताया की यह मेरी माता का वहांन है and इसमें मरुभूमि की देवी का निवास है। इस बात से राजा हसने लगा। then कहाँ की यह मैं नहीं मानता। तब दवित्तमल ने राजा को देवी अपमान ना करने की सलाह दी। तब राजा ने कहा मै तुम्हारी देवी की परीक्षा कल जूनागढ़ की सभा में करूंगा।

दूसरे दिन राजा ने भारी सभा में दवित्तमल जी से कहा अगर आपकी कपड़े की बनी देवी है तो बोलो उनको  चलने के लिए। also दवित्तमल जी ने माता से प्रार्थना की तब माता ने कपड़े की बनी उस ऊंटनी को चलाया तथा अपना प्रमाण देकर राजा को दंडित के रूप में कैद में पढ़ने का श्राप दिया।

राजमाता और राजा  ने माता से माफ़ी मांगी। and माता ने कहा है राजा जो श्राप है वो तो भुगतना ही पड़ेगा पर कैद से मुक्त होने का आश्वासन दिया। then राजा ने  जूनागढ़ के ऊपर छोटी में माता की स्थापना की। माता ने ऐसे राजा को अपनी शक्ति का प्रमाण देखकर अभिमान का नस करके उनकी दशा बदल दी थी  इसलिए माता को दशा माता।  

Dasha Mata Ki 10 Kahaniyan Ke Nam

  •  नल और दमयंती वाली कहानी
  • dasha mata ki dusri kahani राजा की दो रानियों वाली कहानी
  • dasha mata ki teesri kahani सास बहू दोनों के व्रत करने वाली कहानी
  •  बहू द्वारा सास से छिपाकर व्रत करने वाली कहानी
  •  साहूकार के पाँच बेटे और एक बेटी वाली कहानी
  •  राजा की कुलक्ष्मी रानी वाली कहानी
  •  राजा की कोमल रानी वाली कहानी
  •  नर और मादा पक्षी वाली कहानी
  • देवरानी जेठानी वाली कहानी
  • बुढ़िया और उसके बेटे वाली कहानी
  • dasha mata ganesh ji ki kahani

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Dasha Mata Puja Samagri

  1. पीपल के पत्ते
  2. गेहूं के दाने
  3. धागा
  4. पूजा में रोली, मौली, सुपारी, चावल, धूप, दीपक, फल, फूल, मेवा, बतासे, मीठेरोट, लापसी, गुड़, हलवा, पूड़ी, हल्दी, मेहंदी also काजल, सिंदूर, और सफेद रंग का धागा शामिल होता है।

 dekhiye dasha mata ki puja kaise karte hain

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  • वृत वाले दिन सुबह ना धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूरे घर की साफ सफाई करके कचरे को घर से बाहर निकाल कर फेंक दें
  • घर की उत्तर पूर्व दिशा में साफ जगह पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाए और गंगाजल छिड़क ले
  • एक साप चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर पूजा के लिए रोली मोली सुपारी दीपक चावल अगरबत्ती मेहंदी सिंदूर हल्दी से रंगे
  •  कच्चे सूत का 10 तार का धागा लें जिसमें 10 गांठे लगी हुई हो इस धागे को दशा माता की बेल या फिर डोरा कहा जाता है
  • स्वास्तिक चिन्ह के पास हल्दी से 10 बिंदियां बनाएं और अपने मन को एकाग्र करके दशा माता की पूजा
  • करें और नल धनय अती वृत की कथा पढ़े या सुने
  • सूत के कच्चे धागे से पीपल के पेड़ की 10 बार परिक्रमा करें
  • इस दिन पीपल की पूजा की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा करके अगले एक साल तक सूत के डोरे को पूजा के बाद अपने गले में बांध लें
  • इस दिन भोग के लिए लापसी या हलवा जरूर बनाएं दशा माता के वर्त वाले दिन तामसिक चीजों से दूर रहे इस दिन पीपल के पेड़ की छाव में पूजा करना शुभ माना जाता है

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dasha mata ka dora

dasha mata ka dora बनाने के लिए   एक  पानी का कलस  भरकर रख लें और   देखे की  आपके धागे में कितनी ही लड़िया हैं। then धागे को कलर्स के कंठ में  फंसा लें and धागे की लंबाई ऐसे ले की उसमे  10 गांठ  लग जाए और धागा छोटा भी न पड़े।

धागा के एक छोर को पकड़कर हम दूसरे छोर तक ले जाये  ऐसा चार बार करने से  यहां कुल धागे की 12 लड़ियां हो गई हैं। हमें 10 लड़ियां सही होंगी इसके लिए हम 12 लड़िया में से 2 लड़िया  कैंची से काट लेंगे और बड़े आराम से धागे को निकाल लेंगे।

 अब ध्यान रखिए सिर्फ दो ही धागे काटिए एक्स्ट्रा धागे नहीं करने चाहिए वरना आपको डरा खराब हो जाएगा और आपको डरा वापस दोबारा से बनाना पड़ेगा and 10 गांठ लगा लेंगे। फिर आपका डोरा बनकर तैयार हो गया है अब हम इसे हल्दी के पेस्ट में डाल लेंगे।

आप चाहे तो हल्दी के गांठ को घिसकर भी उसका पेस्ट बनाकर इसे धो सकते हैं then आप इस धागे को पूजा से थोड़ा पहले तैयार कर लें क्योंकि थोड़ा सा इसे सूखने में भी समय लगता है।

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conclusion-

दशा माता का व्रत अपने विशेष महत्व and परंपरागत महत्व के साथ हमें धार्मिकता और सामाजिक जागरूकता की दिशा में अग्रसर करता है। इस व्रत का पालन करके हम अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति को प्राप्त कर सकते हैं।

यह व्रत हमें दशा माता की कृपा को प्राप्त करने का अवसर देता है also हमें उसकी आशीर्वाद से परिपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर करता है।

इसलिए, सभी धार्मिक aslo सामाजिक दायित्वों के साथ, हमें इस व्रत का महत्व समझना और इसका उचित पालन करना चाहिए।

FAQs- Frequently Asked Questions

Q- dasha mata के पुराने dore का क्या करे। 

Ans- आप पुराने डोरे को पीपल पास गाड़ दे या पीपल पर बांध दे। 

Q- दशा माता का एक सरल उपाय। 

Ans – पीपल की जड़ में थोड़ी सी हल्दी डाल दें और इस हल्दी और पीपल के जड़ की मिट्टी को मिक्स करके अपने मेन गेट की दीवार में दोनों तरफ अपने हाथ से इसके थापे लगाएं। यह बहुत ही अच्छा उपाय है अपने घर की दशा को अच्छा करने के लिए। 

Q- दशा माता को और किन नमो से जाना जाता है। 

Ans – मोमाई माता, रवेची माता, मुंबा आई के नाम से भी जाना जाता है।

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